Sunday, October 21, 2007

Move आह से आहा तक !

Move आह से आहा तक !

परेशानियों से लेकर प्रशांति तक
मेरी सफर है आह से आहा तक
जब असार संसार को समजा मैंने
शिकायतों से पहुचा साहजिक स्वीकार तक |

संसारी लोगो के छलकपट
आत्मा के आगे माया का पट
अज्ञान का अंधेरा था घट घट |

पर अब किससे ज़गडा किससे बैर ?
मैं ही मैं हूं धरती से आकाश तक
सभी मेरे ही टू है आत्मबंधू
friend से लेकर foe तक |

अस्तित्त्व का उत्सव है जिन्दगी
अब प्रतिक्षण होती है बंदगी
प्रभु को पाने की प्यास सी जगी |

कहां कहां नही ढूंढा तुजको
गुरुद्वारा से लेकर गिरजाघर तक
ख़ुद के भीतर जब झाँका तो
तामस हटा के जा पंहुचा तुरीय तक |

देखा नये नजरिये से यह जीवन
अंत:शत्रुओं से मुक्त है अब मन
और तोड़ दीये माया के सब बन्धन |

अपने आप को पहेचान लिया
गया अहम् से शिवोहम तक
मन के अन्दर जलाया ज्ञान दीपक
समज लिया द्यैत से लेकर अद्यैत तक |

devil भी मैं , devine भी हूँ मैं ही
जहन्नम एयर जन्नत दोनों हाउ यही
बन गया जब मैं देही से विदेही |

विश्व है 'नेति नेति' की एक विराट मूर्ति
सच्चिदानन्द है दूर से लेकर पास तक
मैं था चंचंल सीमित एक लहर
अब हूँ लहेराते निसिम सागर तक |

परेशानियों से लेकर प्रशांति तक
मेरी सफर है आह से आहा तक |

मनीष पंचमतिया

Wednesday, October 10, 2007

હવે...

હવે...

હવે ના મુક્તિ ના બંધન.
ના સ્મિત ના રુદન.
આનંદ યુકત હર ધડકન.
એક નૂતન સ્પંદન.

હવે ના આશા ના નિરાશા.
ના ચાહના ના કામના.
ના અપેક્ષા ના આકાંક્ષા.
વિશ્રાંતે અને શાંતિ.

હવે તો બસ હંમેશા "હાશ !"
પરમ સંતૃપ્તિ અને જ્યોતિ.
નવી દ્રષ્ટિ અને સૃષ્ટિ.
સર્જનહારની એક અનુપમ કૃતિ.

જે આકાશની પેલે પાર.
તે છે હવે મારી પાસ.
મહેસૂસ કરે મારી દરેક સાઁસ.
મનિષ,આ ક્ષણ છે કંઇક ખાસ.

Tuesday, October 09, 2007

अब...

अब...

अब ना मुक्ति ना बन्धन |
ना स्मित ना रुदन |
आनंद से युक्त हर धड़कन |
एक नूतन स्पंदन !

अब ना आशा ना निराशा !
ना चाहना ना कामना !
ना अपेक्षा ना आकांक्षा |
विश्रांति और शांति |

अब तो बस हमेशा " हाश ! " |
परम संतृप्ति और ज्योति !
नई द्रष्टि नई सृष्टि !
सर्जनहार की एक अनुपम कृति !

जो है आकाश के उस पार |
वो है अब मेरे पास !
महेसूस करे मेरी हर सांस !
'मनीष' यह पल है कुछ ख़ास !